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16- 05 - 22धारावाहिक मकाफात - ए - अमल episode 6



ज़ोया हम्माद के साथ  बाइक पर  बैठ  कर  वहा  से जा चुकी  थी ।


ज़ोया और हम्माद बाइक पर  बैठे  जा रहे  थे । तभी  ज़ोया हम्माद से कहती  है  " चलो  ना हम्माद कही  पार्क में बैठते  है , धूप  भी  बहुत  तेज़ है  मेरा तो सारा रंग  ही काला पड़ जाएगा इस धूप  में "

"जो हुकुम आपका , कहते  हुए  हम्माद ने बाइक एक पार्क की तरफ  ली जो उस समय  खाली  था  सिर्फ कुछ  राहगीर  ही गर्मी से बचने  के लिए  वहा  दरखतो के नीचे  लेटे आराम  कर  रहे  थे ।


"कोई हमें देख  ना ले यहाँ " ज़ोया ने कहा

"कोई नही देखेगा , एक तो तू  डरती  बहुत  है  ज़ोया " हम्माद ने कहा

"तुम जानते नही हो मेरे अब्बू और मोहल्ले वालो को अगर  किसी को ज़रा  सा भी  पता  लग  गया  कि मैं तुम्हारे साथ  बाइक पर  कॉलेज  आती  जाती हूँ, और तुमसे प्यार करती  हूँ तो पता  है  किया होगा, सोचा  है  कभी  हमारी  मोहब्बत  परवान  चढ़ने  से पहले  ही दफन  कर  दी जाएगी। और लोग उस पर  मिट्टी डाल कर अपने हाथ  झाड  रहे  होंगे और कहेँगे  " अल्लाह मगफिरत   फरमाए  दोनों की " " ज़ोया ने कहा

"चल  अच्छा वहा  बैठते  है  उस घने  पेड़ के नीचे । वहा  छायी भी  ज्यादा है । और लोग भी  कम  है  वहा  " हम्माद ने कहा और वो दोनों वहा  बैठ  गए ।

हम्माद ज़ोया की टांग पर  अपना सर  रख  कर  लेट गया और अपनी उंगलियों से उसके बाल सेहलाने लगा  जो अक्सर वो करता  था ।

ज़ोया भी  उसके घूँघराले  बालो में अपनी ऊँगली फसाती हुयी बोली " हम्माद तुम अपनी अम्मी को मेरे घर  कब  भेजो गे मेरा हाथ  मांगने के लिए  "

ये सुन हम्माद को ज़ोर से फंदा लगा  और वो खासता हुआ उठ  बैठा ।

"किया हुआ हम्माद तुम ठीक  तो हो, ये लो पानी पियो " ज़ोया ने अपनी पानी की बोतल उसे पकड़ाते हुए  कहा

हम्माद ने पानी पिया और गहरी  सास ली और बोला " किया हुआ है  तुझे  जो आज  दोबारा ये बात लेकर  बैठ  गयी । किसी ने कुछ  कहा  या फिर  तेरे अब्बू ने कही  और तेरी शादी  करने  की बात की है  "


"हम्माद दो हफ्ते बाद मेरा इम्प्रूवमेंट एग्जाम है  इंग्लिश का जिसमे मैं फ़ैल  हो गयी  थी । मुझे  इस पढ़ाई  से निजात हासिल करनी  है । बस  इसलिए  मैं तुमसे तुम्हारी अम्मी को अपने घर  मेरा हाथ  मांगने आने  के लिए  कह  रही  हूँ।" ज़ोया ने कहा


"अगर  तुझे  पढ़ाई  अच्छी नही लगती  तो छोड़  दें। इसमें शादी  कहा  से आ  गयी  " हम्माद ने कहा

"नही छोड़  सकती  जब  तक  शादी  नही हो जाती। क्यूंकि अब्बू चाहते  है  की मैं M. A इंग्लिश से करू । लेकिन उन्हें किया पता  कि उनकी बेटी B. A कि इंग्लिश में ही लुढ़क  गयी  है ।

जब  शादी  हो जाएगी तब  मुझ  पर  मेरे शोहर  की बात मानना फर्ज़ होगी। और मेरे शोहर  तो तुम होगे और तुम जानते ही हो की पढ़ाई  में मेरा डिब्बा कितना गुल है । इसलिए  कह  रही  हूँ की मुझे  जल्द से जल्द अपनी दुल्हन बना  लो। और कुछ  काम शाम  करलो ।

मुझे  कुछ  ज्यादा नही चाहिए तुमसे बस  दो जोड़ी कपड़ो  में भी  ब्याह कर  ले जाओगे तब  भी  में उफ़  तक  नही करूंगी । बस  मुझे तुम्हारे साथ और प्यार की ज़रुरत  है ।

तुम भी  मुझसे  उतना ही प्यार करते  हो ना जितना की मैं करती  हूँ तुमसे " ज़ोया ने कहा

हम्माद खामोश  था  उसके पास  कोई जवाब  नही था  उसे पट्टी पढ़ाने  का वो काफी देर तक  सोचता  रहा ।

ज़ोया ने दोबारा पूछा  और कहा " ये इतना मुश्किल सवाल  तो नही था , जिसका जवाब  देने के लिए  तुम्हे इतना सोचना  पड़ रहा  है , मुझे  लगता  है मैं ही पागल  हूँ जो तुम्हे पागलो की तरह  चाहती  हूँ। "


हम्माद ने एक गहरी  सास ली और अपने दोनों हाथ  उसके गालो पर  रखे  और कहा " तुम्हे मेरे प्यार पर  यकीन  नही शायद अगर मुझे  तुमसे मोहब्बत नही होती तो किया आज  इस तपती  दोपहरी में, मैं तुम्हारे साथ  यहाँ इस पार्क में बैठा  होता। तुम समझा  करो  लड़को  के लिए  शादी  का फैसला करना  इतना आसान  नही होता। मैं भी  तुमसे शादी  करना  चाहता  हूँ, मैं भी  हर  रोज़ उठ  कर  तुम्हारा चेहरा  देखना  चाहता  हूँ। मैं भी  सारी खुशियाँ  तुम्हारे कदमो  में रख  देना चाहता  हूँ।

लेकिन उससे पहले  मैं कुछ  बन तो जाऊ ताकि तुम्हारे लिए  हर  ख़ुशी  ला सकूँ "


"लेकिन कब  हम्माद, कई  सालो से तुम यही  कह  रहे  हो आखिर  कब  वो दिन आएगा  जब  तुम्हारा नाम मेरे नाम के आगे  लगेगा और हम  दुनिया की नज़रो  में एक मिया बीवी की तरह  मुख़ातिब( परिचित ) होंगे आखिर  कब  वो खुश नसीब  दिन आएगा . जब  मैं तुम्हारी मेहबूबा  से तुम्हारी शरीके हयात  ( पत्नि ) बनूँगी  " ज़ोया ने कहा


" बेहद  जल्द मेरी जान, बस  थोड़ा  और सब्र करो  तुम जानती तो हो अपने अब्बू को वो मर  जाएंगे लेकिन तुम्हारा हाथ  मुझ  अवारा के हाथ  में नही देंगे। मेने अपनी कुछ  तस्वीर  मुंबई  भेजी  है  देखो  कही  ना कही  से मॉडलिंग  के लिए  जरूर कॉल आएगी । फिर  देखना  मैं कैसे तुम्हे तुम्हारे बाप के घर  से अपनी दुल्हन बना  कर  डोली में बैठा  कर लेकर  जाऊंगा " हम्माद ने प्यार भरे  लहजे  में कहा ।

मुझे  तुमसे ज्यादा जल्दी है , तुम्हे अपनी दुल्हन के रूप  में देखने  की बस  थोड़ा  और सब्र करो  और अपनी पढ़ाई  पर  ध्यान दो ताकि कम से कम  B. A तो इंग्लिश से कर  ही लो M. A ना सही  तो। हम्माद ने उसे बोतल  में उतारते हुए  कहा।


"तुम सच  कह  रहे  हो ना, तुम कोशिश  कर  रहे  हो कुछ  करने  की, मेरी मानो इस मॉडलिंग  को छोड़  कर  अपने अब्बू के काम में हाथ  बटाओ। क्यूंकि मॉडलिंग में अजीब  अजीब  सी लड़किया  भी  होती है , जो दूसरे  लड़को  पर  डोरे डालती है ।" ज़ोया ने कहा

"अच्छा तो तुम्हे जलन  हो रही  है , कि कही  कोई और मुझे  तुमसे छीन  कर  ना ले जाए अगर में मॉडल  बन  गया  तो " हम्माद ने मुस्कुराते हुए  कहा

ज़ोया गुस्से में उसका कालर  पकड़ती  और कहती  " कोई छीन  कर  तो देखे नही उसके सारे दाँत तोड़ कर  उसके हाथ में ना रख  दिए  तो मेरा नाम भी  ज़ोया नही "

"बस, बस मेरे दाँत मत  तोड़ देना फिर  सब  तुम्हे ही चिढ़ाएंगे  कि वो देखो  ज़ोया का पोपला ( जिसके दाँत ना हो )शोहर  जा रहा  है  " हम्माद ने अपना कालर  उसके हाथ  से छुड़ाते  हुए  कहा।


हम्माद ने उसकी कलाई  पकड़  ली और कलाई को चूमने  की कोशिश  की। तभी ज़ोया ने अपना हाथ  जोर से उसके मुँह पर  मारा और और वहा  से भाग  उठी ।


हम्माद की नाक पर  खींच  कर  लगा  ज़ोया का हाथ  उसकी चीख  निकल गयी  और वो अपनी नाक को पकड़ते  हुए  बोला " ज़ोया की बच्ची  मेरी नाक तोड़ दी छोडूंगा नही तुझे  "

जोया हस्ती हुयी वहा  से भाग  निकली।

"चलो  शुकर  है  शादी  वाली बात से बच  निकला और दोबारा बोतल  में उतार लिया।" हम्माद ने कहा


उसके बाद हम्माद ने ज़ोया को पकड़  लिया। तीन  बज  चुके  थे  दोपहर  के। ज़ोया ने जैसे ही घड़ी  देखी  हम्माद से उसे उसके घर  ले जाने को कहा।

उसके बाद वो दोनों बाइक पर  बैठ  कर  घर  की और चल  पड़े।


उधर  तबरेज  भी  दुकान पर आ  पंहुचा  और काम में लग  गया । उसके चेहरे  पर  एक अजीब  सी मुस्कान थी  उसे ज़ोया का चेहरा  याद आ  गया  जब  वो अपने बालो को समेट  कर उन्हें कानो के पीछे  ले जा रही  थी  और पानी पी  रही  थी ।


"किया हुआ तबरेज  भाई ,आप किसको याद करके  मुस्कुरा रहे  है  " अनुज ने पूछा जो उसे इस तरह  मुस्कुराता हुआ काफी देर से देख  रहा  था ।

"कुछ  नही बेटा, बस  कुछ  बात याद आ  गयी  थी " तबरेज  ने कहा। और फिर  गाड़ी की मरम्मत  में लग  गया ।


लेकिन बीच  बीच  में उसका ध्यान जोया की तरफ  चला  जाता और वो मन  ही मन  मुस्कुराता।


हम्माद ज़ोया को पिछली गली  में छोड़  देता और वो वहा  से अपने घर  आ  रही  होती है तभी  रास्ते में उसे उसके अब्बू मिल जाते है। जिन्हे देख  ज़ोया घबरा  जाती और सोच  में पड़ जाती कि कही  उसे अब्बू ने देख  तो नही लिया हम्माद के साथ ।

"ज़ोया बेटा पैदल  क्यू आ  रही  हो किया रिक्शा  नही मिली " उसके अब्बू ने पूछा 


ज़ोया घबरा  जाती है  और सोचती  कि किया बहाना  बनाऊ ।

तभी  वो कहती  " अब,,,,, अब,,,, अब्बू  वो रिक्शा  में दूसरी  सवारी  बैठी  थी  जिसे कही  जल्दी जाना था। इसलिए  मैं सडक  पर  ही उतर गयी । और अब पैदल  आ  रही  हूँ ज्यादा दूर  थोड़ी  है  हमारा  घर  सडक  से "


"अच्छा ये बात है , फिर  सही  किया तुमने " अशफाक साहब  ने कहा

"जी अब्बू, बस  इसलिए  पैदल  आ रही  हूँ  और आप  कहा  से आ  रहे  है  इतनी धूप  में " ज़ोया ने अब्बू से पूछा 

" बेटा आज  तुम्हारे बहनोई  आ  रहे  है  शाम  को, तुम्हारी बहन  को और भांजे  को लेने इसलिए  तुम्हारी अम्मी को नाश्ते पानी का सामान देने जा रहा  हूँ। "अशफ़ाक़  साहब  ने कहा


"आपी जा रही  है , इतनी जल्दी अभी  तो आयी  थी  और अब जा रही  है  " ज़ोया ने चौक  कर  कहा 


"हाँ बेटा शादी  के बाद ससुराल  ही लड़की  का अपना घर  होता, मायके में तो बस  मेहमान बन  कर  आती  है  बेटियां शादी  के बाद। इसलिए  अब आरज़ू  भी  जा रही  है, तुम्हारी माँ बता  रही  थी  कि आरज़ू  की सास बीमार है  इसलिए  तस्लीम  उसे लेने आ  रहा  है  नही तो वो अभी कुछ दिन और रुक जाती " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा


"अच्छा अब्बू " ज़ोया ने कहा

"और तुम्हारी पढ़ाई  केसी जा रही  है , मुझे  पूछना  याद नही रहा  " अशफ़ाक़  साहब  ने पूछा 

ज़ोया घबरा  जाती और झूठ  बोलते हुए  कहती  " जी अब्बू एक दम अच्छी जा रही  है  "

"चलो  अच्छा है , मन  लगा  कर  पढ़ो । आरज़ू  ने तो अपनी पढ़ाई  शादी  के बाद पूरी  कर  ली थी  लेकिन मैं चाहता  हूँ तुम अपनी पढ़ाई  मेरे घर  पर  ही पूरी  करके  अपने ससुराल  जाना फिर  बाद में पता  नही शोहर  इज़ाज़त  दें या ना दें आगे  पढ़ने की "अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

" ज़ोया ने अपने अब्बू की बात सुन एक अजीब  सा मुँह बनाया और उनकी हाँ में हाँ मिला दी घर  भी  आ  चुका  था  और वो दोनों घर  में घुसते  है  सलाम  करते  हुए  "


"अरे बाप बेटी एक साथ  घर  में दाखिल हो रहे  है  खेर  तो है  सब  " ज़ोया की अम्मी ने कहा

"जी सब  कुछ  ठीक  है , ज़ोया मुझे  गली  के नुक्कड़ पर  ही मिल गयी  थी  जब  में सामान ला रहा  था  " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

"ज़ोया आज  तू  बड़ी  जल्दी आ  गयी  तेरी तबीयत  तो ठीक  है  " ज़ोया की माँ ने पूछा 

"जी अम्मी सब  कुछ  ठीक  है, आज  कॉलेज  की छुट्टी जल्दी हो गयी  थी । और वैसे आपी  कहा  है  अब्बू बता  रहे  थे  वो जा रही  है  आज  " ज़ोया ने अपनी माँ से पूछा 


"हाँ बेटा आज  जा रही  है  वो, इसलिए  अपना और अपने बेटे का सामान समेट  रही  है  ताकि कुछ  भूल  ना जाए।जाओ जाकर  मिल आओ  अपने कमरे में है  " ज़ोया की अम्मी ने कहा


ज़ोया दौड़ कर  अपनी बहन  के कमरे  की तरफ  चली ।

"बेहद प्यार है  इन दोनों बहनो  में किसी की नज़र  ना लगे  देखा  केसा दौड़ती हुयी चली  गयी  जब पता  चला  की बहन  जा रही  है । शाम  को " जोया की अम्मी ने पास खड़े  अशफ़ाक़  साहब  से कहा

"हाँ सही  कहा  बेगम  तुमने, ये दोनों तो हमारे  आँगन  की दो चिडियो  का जोड़ा है । जिसमे से एक चला  गया  इस आँगन  को छोड़  कर  और दूसरा  कुछ  दिन बाद चला  जाएगा हमें छोड़  कर  फिर  हम  दोनों तन्हा रह  जाएंगे ।" अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

"आपको  याद दिला दू  की हमारा  एक बेटा अली भी  है  तो फिर  भला  हम  तन्हा क्यू रहेंगे । मैं उसके लिए  एक सुंदर सी लड़की  अपनी बहु  बना  कर  लाऊंगी। हमारे  आँगन  में भी  पोते पोतिया खेलेंगे  हम  भला  तन्हा क्यू रहेंगे " सहर  ने कहा


"हाँ ये तो है , लेकिन मैं इतनी उम्मीद लगा कर नही बैठा हूँ अपने बेटे से, क्यूंकि वक़्त बदल रहा है, किया पता वो बड़े होकर किसी दूसरे शहर में या फिर किसी दूसरे देश में बस जाए तब  भी  तो हम  तन्हा ही रहेंगे । इसलिए  मैं उम्मीद लगा  कर नही बैठा  हूँ। क्यूंकि उम्मीद जब  टूटती  है  तो बहुत  चोट पहुँचती  है  " अशफ़ाक़  साहब  ने कहा

"नही मुझे  अपनी परवरिश  पर  पूरा  भरोसा  है , और अगर ऐसा कुछ  हुआ भी  तो हमारी बेटियां और आप  हम  सब  के साथ  तो होंगे। फिर  किया परेशानी  है । आपने  भी  किन बातो में उलझा  दिया मुझे । कितना काम बाकी है  करने  को।

सोच  रही  हूँ खाना भी  बना  लू  तस्लीम  के लिए  अगर  खाने  के समय  आ  गया  और खाना  कम हुआ बेवजह आरज़ू  को बाते सुनना पड़ेंगी  अपनी सास की, कि शोहर  को बिना खाना  खिलाये  ही ले आयी  अपने मायके से। नही तो टिफिन में करके  साथ  में दें दूँगी  " सहर  ने कहा

"जो करना  है  कीजिये ये आप  का घरेलु  मसला है , हमारा  काम बाजार जाकर  सामान लाकर  देने का था  जो हमने  ला दिया " अशफ़ाक़ साहब  ने कहा

उसके बाद सहर  रसोई  में चली  जाती है  और अशफ़ाक़  साहब  अपने कमरे  में पंखा  चला  कर  लेट जाते है ।


"आपी  तुम जा रही  हो, जीजू से मना कर  दिया होता कि मैं अभी  थोड़ा  और रुकूंगी अभी  तुम्हे दिन ही कितने से हुए  है  घर  आये  हुए  " ज़ोया ने आरज़ू  से कहा


" बहन  दो हफ्ते हो गए  मुझे  ससुराल  से आये  हुए , पता  ही कहा चले  ये दो हफ्ते फिर  कल  से वही  रोटीन शुरू  हो जाएगा ससुराल  जाकर । वैसे भी  सास बीमार है  इसलिए मावी के अब्बू मुझे  लेने आ  रहे  है नही तो मैं खुद  उनसे कहकर  कुछ  दिन और रुक जाती " आरज़ू  ने कहा

"उफ़  ये तुम्हारी बीमार सास और तुम्हारी नन्दे कब  पीछा  छोडेंगी  तुम्हारा " ज़ोया ने कहा

" अरे, ऐसे नही कहते  है  वो सब  बड़ी  है  तुमसे उम्र में " आरज़ू  ने ज़ोया से कहा

"मैं फिर  आ  जाउंगी कुछ  दिन बाद तो ईद है , फिर  ईद पर  आ  जाउंगी रुकने के लिए  अभी  मजबूरी  है  जाना तो पड़ेगा , बेवजह  ये नाराज़ हो जाएंगे  और कहेँगे  " मेरी माँ बीमार है , और तुम्हारा मायके से प्यार ही ख़त्म  नही हो रहा  "" आरज़ू  ने ज़ोया को समझाते  हुए  कहा


"अभी  तो कई  महीने  पड़े  है  ईद  आने  में, वादा करो  ईद  से पहले  भी  रुकने के लिए  आओगी। नही तो मैं तुमसे बात नही करूंगी  " ज़ोया ने कहा

"ठीक  है  मेरी माँ, आ  जाउंगी ईद  से पहले। तू  क्यू नही आ  जाती अब्बू के साथ  मेरे घर  एक दो दिन के लिए  रुकने को " आरज़ू  ने कहा

"नही तुम्हारे घर  हर  गिज़ नही मुझसे नही देखा  जा सकता  तुम्हे नौकरानीयों कि तरह  सब  के आगे  पीछे  दौड़ते हुए । मैं तो मुँह फट हूँ बेवजह  किसी को कुछ कह  बैठी  तो तुम्हारे लिए  मुसीबत  हो जाएगी। तुम्ही घर  आ  जाना जब  मौका मिले।


और दो हफ्ते बाद मेरा इम्प्रूवमेंट का एग्जाम है  उसकी तैयारी करनी  है  मुझे  " ज़ोया ने कहा

"बहन  अच्छे से पढ़ाई  करना  ताकि इस बार तू  पास हो जाए। अगर  अब्बू को पता  चला  की तू फ़ैल  हो गयी  है  तो बेवजह  उनका दिल टूट  जाएगा और अम्मी को तो तू जानती है , सब  कुछ  छुटवा  कर  तेरे हाथ  पीले  करवा  देंगी फिर  करती  रहना  जिंदगी भर  खिदमत  अपने ससुराल  वालो की" आरज़ू  ने कहा


"ठीक  है  इस बार कोशिश  करूंगी  नही तो फिर  शादी  करके इस पढ़ाई  से जान छुटवाउंगी  अपनी।" ज़ोया ने कहा


"तुझे  समझाना  मतलब भैंस के आगे  बीन  बजाना  वही  करेगी  जिस काम को मना  किया जाता है । चल  अब जा जाकर  हाथ  मुँह धो  और कुछ  खा पी कॉलेज  से आयी  है  भूख  भी  लगी  होगी " आरज़ू  ने कहा

"हाँ, आपी  भूख  तो लगी  है वैसे अम्मी ने किया बनाया  था  दोपहर में, शाम  को तो ज़रूर कुछ  अच्छा बना  रही होंगी उनका दामाद जो आ  रहा  है  उसे लोखी, तुरई और दाल तो खिलाने से रही  " ज़ोया ने पूछा 


"हाँ, बनाया  है  ना, तेरी पसंद  की सब्जी भिंडी  और रोटी "आरज़ू  ने हस्ते हुए  कहा


"अरे यार एक तो हमारे  घरों  में सिवाय इन लोखी, भिंडी  और दालो के अलावा कुछ बनता नही है । चावल  क्यू नही बनाये  अम्मी ने मुझे  नही खाना  भिंडीयो  से रोटी " ज़ोया ने गुस्से में कहा

"परेशान  मत  हो मेने तेरे लिए अंडे का आमलेट  बना  दिया था  जो फ्रिज  में रखा  है , जा जाकर  ओवन  में गरम  करके  खा ले, मुझे  पता  था  की तू भिंडीयो  को देख  कर  खाना  नही खायेगी  " आरज़ू ने कहा


"ओह मेरी प्यारी बहन  मैं अभी  जाकर  खा कर  आती  हूँ " ज़ोया ने कहा और जाने लगी

"सुन ये खाने  पीने  के नखरे  बस  मायके तक  ही होते है  ससुराल  में जब  सब  के लिये  बनाओ  तो खुद  भी  खाना  पड़ता  है । इसलिए  खाने  में नखरे  जरा  कम दिखाया  कर ।" आरजू  ने कहा


"अभी  तो मैं अपने बाप के घर  हूँ, जब  शोहर  के घर  जाउंगी तब  की तब  देखी  जाएगी "ज़ोया ने कहा और वहा  से भाग  गयी ।


"पागल कही  की " आरज़ू  ने अपने आप  से कहा और कपडे  पैक  करने  में लग  गयी ।


धीरे  धीरे  दोपहर  से शाम  होने लगी ।


तबरेज  ने दिन भर  की सारी कमाई  इकठ्ठा की जो भी  उस दिन दुकान पर  आयी  थी  जो तकरीबन  3000 रूपये थी ।

उन्हें अपने पर्स में रख  कर  उसने अनुज से कहा " अनुज मैं जा रहा  हूँ  तुम भी  थोड़ी  देर बाद दुकान बंद  कर  के चले  जाना और चाबी  उस्ताद को दें आना । मेरे पास  दुसरी चाबी  है  मैं कल  सुबह आ  कर  दुकान खोल  लूँगा । और तुम कल  स्कूल  जाना दोपहर  बाद आना  दुकान पर  "

"जी उस्ताद समझ  गया  "अनुज ने कहा

तबरेज  वहा  से अपने मामू के घर  की तरफ  जाने लगा  जो कि कुछ  दूरी  पर  था ।

उनके घर  पहुंच  कर  दरवाज़े  पर  दस्तक  देता है ।

"साद जरा  देखना  दरवाज़े  पर  कौन है  " रुक़ाय्या ने अपने छोटे  बेटे से कहा

"अरे यार कौन आया  है  दरवाज़े  पर  इस समय, चेन  से बैठ  कर  मोबाइल भी  नही चलाने  देते घर  का छोटा  बेटा तो हमेशा  नौकर  ही समझा  जाता है  " साद ने खिसयाते हुए  अपनी अम्मी से कहा

"जा रहा  है , या बुलाऊ तेरे अब्बू को सही  कह  रहे  थे  कि हमारे  दोनों बेटे हटहराम हो गए  है लाड़ प्यार में " रुकय्या ने कहा

"जा रहा  हूँ, दरवाज़ा  खोलने  समी  को तो कुछ  नही कहती  हो आप , बस  मेरे पीछे  पड़ी  रहती  हो। छोटा  हूँ ना इसलिए  सब  दबा  लेते है " साद ने कहा और जाकर  दरवाज़ा  खोला ।


"अरे तबरेज  भाईजान  आप " साद ने दरवाज़ा  खोल  कर  सलाम करते  हुए  कहा।

"कैसे हो मेरे भाई अम्मी अब्बू किधर  है  " तबरेज  ने सलाम  का जवाब  देते हुए  पूछा 

"अम्मी बवार्चिखाने में और अब्बू अंदर  न्यूज़ देख  रहे  है" साद ने कहा

"साद बेटा कौन है  दरवाज़े पर  किससे बाते कर  रहे  हो " रुक़ाय्या रसोई  से बाहर सर  पर  दुपट्टा लेते हुए  आयी  और पूछा ।


"अरे तबरेज  बेटा तुम, आओ  अंदर  बाहर  क्यू खड़े  हो, तुमने भाईजान  को अंदर  आने  का नही कहा साद " रुकय्या ने तबरेज  को देख  कर  कहा

सलाम  मुमानी, तबरेज  ने बैठते  हुए  कहा

"दुकान का हिसाब देने आये  होगे " रुकय्या ने पूछा 

"जी मुमानी दुकान का हिसाब भी  देना था और मामू से भी  मिलना था  फ़ोन  पर  ज्यादा बात नही हुयी थी  मेरी " तबरेज  ने कहा

"अच्छा, अच्छा तो वैसे कितने का हिसाब हुआ आज" रुकय्या ने पूछा 

तबरेज  उन्हें पैसे देते हुए  बोला मुमानी 3000

"बस  3000, तुम्हारे मामू तो कभी  5000 से कम नही लाये " रुकय्या ने तंस  करते  हुए  कहा


तबरेज  उनकी बात सुन कुछ  कहता तभी  उसके मामू वहा आ  गए । और बोले " भांजे  साहब  आये  है  कुछ  खाने  पीने  का लाओ किया यहाँ खड़ी  कर  रही  हो बेगम  "


"हाँ, हाँ बस  जा ही रही  थी  चाय  बनाने  " रुकय्या ने बात घुमाते  हुए  कहा

"रहने  दीजिये मुमानी मुझे  भी  बस  निकलना  है  घर  पर  बहने  आयी  हुयी है  उनसे भी  मिलना है। शाम  हो चली  है  उन्हें भी  अपने घर  जाना होगा मेरा ही इंतज़ार  कर  रही  होंगी "तबरेज  ने कहा


"अच्छा, ऐमन और मिराल आयी  हुयी हैचलो  फिर  ठीक  है  फिर  कभी  आना  फुर्सत से " रुकय्या ने कहा और चली  गयी 

"अच्छा मामू आप  अब केसा  महसूस  कर  रहे  है , आपने  दवाई  ली या नही। आज  का हिसाब मेने मुमानी को दें दिया है । और ये परचा  है  जिस पर  लिखा  है  कि किससे और कितना पैसा लिया था ।" तबरेज  ने पर्ची  देते हुए  कहा

"अरे मेरे बेटे ये किया कर  रहे  हो तुम, तुम अगर  ये सब  नही दोगे तो किया मैं तुम पर  शक  करूंगा । मुझे  तुम पर  और तुम्हारी ईमानदारी पर  पूरा  भरोसा  है तुम मेरी बहन  की औलाद  हो और बिलकुल मेरे बेटे जैसे हो। आज  के बाद ये सब  मत  करना  " हुसैन साहब  ने कहा


उसके बाद उन दोनों में बात चीत  हुयी और हुसैन साहब  ने कहा " कि अब मैं दुकान पर  कम  ही आया  करूंगा  अब मेरी बूड़ी  हड्डियों से काम नही होता ना जाने ये साद और समी  कब  अपनी ज़िम्मेदारी को समझेंगे । तुम इस साद को अपने साथ ले जाओ दुकान पर  थोड़ा  बहुत  दुकान चलाना  सीख  जाएगा "

"जैसा आप को ठीक  लगे मामू " तबरेज  ने कहा और थोड़ी  देर बाद वहा  से चला  गया।


रुकय्या हुसैन साहब  को पैसे देते हुए  बोली " आप तो ज्यादा पैसे लाते थे  और आपका  भांजा  तो सिर्फ 3000 रूपये देकर  गया  है  जरूर  दाल में कुछ  काला है । आपकी बहन  और उनके बच्चे  एक दिन आपको  लूट  खाएंगे  जो आप  उनपर  अंधा  भरोसा  करते  हो "

"ज़रूर  तुमने ही तबरेज  से हिसाब माँगा होगा इसलिए  वो मुझे  परचा  दें रहा  था  जिसपर  सारा हिसाब लिखा  था  दिन भर  का, शुक्र करो कि मेरे भांजे  ने मेरा हुनर  सीख  लिया और वो मेरे ना होते हुए भी  घर  पर  पैसे पंहुचा  गया । अगर  तुम्हारे इन दोनों नामा कूलो  के उपर  हम  दोनों होते तो अब तक  फाके की नौबत  आ  गयी  होती और ये घर भी  इन दोनों ने बेच  खाया  होता " हुसैन साहब  ने कहा


"लोट फेर  कर  बात आप  हमारे  बेटों पर  ही ले आया  कीजिये हर  बार, बस  आपको  तो अपनी बहन  और उसके बच्चे  अच्छे लगते  है  और अपने बच्चे  ज़हर। देखना  एक दिन मेरे दोनों बेटे भी  इस लायक हो जाएंगे तब मैं आपसे  कहूँगी  " रुकय्या ने कहा

"काश की वो दिन मेरी आँखों  के सामने आ  जाए। और तुम्हारा सपना  भी  सच  हो जाए लेकिन मुझे  रत्ती भर  भी  उम्मीद नही तुम्हारे इन नालायक  बेटों से जिन्होंने अब तक  अपने बाप की रोटियां तोड़ी है । देखता  हूँ किया करता  है  ये दुकान पर  जाकर ।"हुसैन साहब  ने कहा और कमरे  में चले गए ।


तुम दोनों की वजह  से मुझे  रोज़ तुम्हारे अब्बू से जलील  होना पड़ता  है । लेकिन तुम दोनों बेशर्मो  के कान तले जू भी  नही रेंगति कि तुम्हारी माँ तुम्हे कितना सप्पोर्ट करती  है लाओ हम  भी  कुछ  कर  के दिखा  दें।


"अरे अम्मी परेशान  क्यू होती हो अभी  हमारी  उमर  ही कितनी सी है , अभी  तो हमारे दूध  के दाँत भी नही टूटे  है  " साद और समी  ने कहा


"नालायक  हो तुम दोनों बहुत  बड़े  वाले सही  कहते  है  तुम्हारे अब्बू " रुकय्या ने कहा

"अरे अम्मी अब आप  तो अब्बू ना बने , लाये 100रूपये देदो हम  दोनों को बिरयानी खा कर  आनी  है । वैसे भी  आपने ज़रूर  कोई सब्जी बनायीं होगी जो हमें पसंद  नही होगी " समी  ने कहा


रुकय्या उन्हें 100,100 रूपये देते हुए  बोली " तुम्हारे बाप को भनक  भी  नही लगनी  चाहिए  की मेने तुम्हे पैसे दिए  थे  जाओ और वही  खा कर  आ  जाना "

शुक्रिया अम्मी, अब्बू किया अब्बू के फरिश्तों को भी भनक  नही लगेगी । हम  यूं गए  यूं आये  चल  समी  बिरयानी खा  कर  आते  है  हम  से रोज़ रोज़ सब्जियाँ और दाल नही खायी  जाती।

रुकय्या ने उन दोनों का माथा  चूमा  और अंदर  रसोई  में चली  गयी ।


तबरेज  अपने घर  जा रहा  था  तभी  रास्ते में उसने आइसक्रीम का ठेला  देखा  और वहा  से आइसक्रीम खरीदने  लगा  तभी  किसी ने उसकी कमर  पर  हाथ  मारा। तबरेज  पीछे  मुड़ा तब  उसके पीछे ।



आखिर  तबरेज  के पीछे  कौन था  जिसने उसकी कमर  पर  हाथ मारा किया कोई रिश्तेदार या फिर  कोई दुश्मन  जानने के लिए  पढ़ते  रहिये  मकाफ़ात  -ए -अमल  हर  सोमवार को।


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9 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

17-May-2022 12:25 AM

बहुत खूब

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Farida

16-May-2022 08:16 PM

👌👌

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Neha syed

16-May-2022 07:41 PM

Nice

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